मणिपुर में फिर छह महीने के लिए बढ़ा राष्ट्रपति शासन, संसद में प्रस्ताव को मिली मंजूरी

मणिपुर में फिर छह महीने के लिए बढ़ा राष्ट्रपति शासन, संसद में प्रस्ताव को मिली मंजूरी

President Rule In Manipur Extended

President Rule In Manipur Extended

इम्फाल: President Rule In Manipur Extended: मणिपुर में चल रहे राजनीतिक और जातीय संकट के बीच एक बार फिर राष्ट्रपति शासन की अवधि को छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया है. अब यह 13 फरवरी 2026 तक लागू रहेगा. यह लगातार दूसरी बार है जब राज्य में राष्ट्रपति शासन को बढ़ाया गया है, जिससे साफ संकेत मिलता है कि मणिपुर में हालात अब भी सामान्य नहीं हो पाए हैं.

केंद्र ने क्यों बढ़ाया राष्ट्रपति शासन?

केंद्र सरकार ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने का निर्णय ऐसे समय पर लिया है जब राज्य में शांति और कानून व्यवस्था पूरी तरह बहाल नहीं हो पाई है. गृह मंत्री अमित शाह ने यह प्रस्ताव लोकसभा में पेश किया, जिसे संसद ने मंजूरी दी. यह फैसला 13 फरवरी 2025 को तत्कालीन मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद लगाया गया राष्ट्रपति शासन का ही विस्तार है.

हालांकि भाजपा को राज्य विधानसभा में बहुमत हासिल है, लेकिन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद पार्टी नया मुख्यमंत्री तय करने में नाकाम रही. ऐसे राजनीतिक गतिरोध के कारण राज्य में संवैधानिक संकट पैदा हो गया था, जिसके चलते राष्ट्रपति शासन लागू करना आवश्यक हो गया.

हिंसा की जड़ में क्या है?

मणिपुर में मई 2023 से मीतेई और कुकी समुदायों के बीच जारी जातीय हिंसा ने राज्य को अस्थिर कर दिया है. अब तक 260 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, और हजारों लोग अब भी राहत शिविरों में रह रहे हैं. इस हिंसा की वजह से सरकार और सुरक्षाबलों को कानून-व्यवस्था बनाए रखने में लगातार संघर्ष करना पड़ रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार, हालात में कुछ हद तक सुधार हुआ है लेकिन स्थिति को पूरी तरह सामान्य कहना अभी जल्दबाज़ी होगी. कई इलाकों में अब भी असुरक्षा का माहौल है, और असामाजिक तत्वों की सक्रियता बनी हुई है.

केंद्र सरकार की रणनीति क्या है?

केंद्र सरकार ने साफ किया है कि उसका उद्देश्य राज्य में स्थायित्व लाना, अवैध हथियारों पर लगाम लगाना, और विस्थापित लोगों का पुनर्वास करना है. सरकार इस वर्ष के अंत तक राहत शिविरों को बंद करने की योजना पर काम कर रही है. इसके लिए दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाली और आपसी संवाद को प्राथमिकता दी जा रही है.

इसके साथ ही, केंद्र सरकार राज्य में अगले विधानसभा चुनाव की संभावनाओं को भी परख रही है. लेकिन तब तक, उसका मानना है कि एक चुनी हुई सरकार बहाल करना जल्दबाज़ी होगी, जब तक कि ज़मीनी हालात पूरी तरह स्थिर न हो जाएं.

बीजेपी की राज्य इकाई पर असर

भाजपा के लिए मणिपुर में राष्ट्रपति शासन का विस्तार एक राजनीतिक झटका भी माना जा रहा है. राज्य की भाजपा इकाई लगातार केंद्र से आग्रह कर रही है कि राज्य में जल्द से जल्द चुनी हुई सरकार को बहाल किया जाए. लेकिन केंद्र का रुख इस समय सतर्क है.

दूसरी ओर, कुकी-ज़ो समुदाय से आने वाले 10 विधायक चाहते हैं कि जब तक उनकी अलग प्रशासन (Union Territory जैसी संरचना) की मांग पर चर्चा पूरी नहीं होती, तब तक राज्य में राष्ट्रपति शासन जारी रहना चाहिए. यह रुख दर्शाता है कि मणिपुर में राजनीतिक सहमति बनना अभी भी एक कठिन चुनौती है.

राष्ट्रपति शासन कैसे और कितनी बार लगाया जा सकता है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत, जब किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाता है, तो केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन लागू कर सकती है. यह शासन प्रारंभ में छह महीने के लिए लागू होता है और संसद की मंजूरी से इसे हर छह महीने में अधिकतम तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है. मणिपुर का मामला विशेष है, क्योंकि यह 11वीं बार है जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ है, जो देश में किसी भी राज्य के लिए सबसे अधिक बार की गई कार्रवाई है.

आगे क्या?

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन का विस्तार इस बात की ओर संकेत करता है कि राज्य अब भी एक अस्थिर दौर से गुजर रहा है. राजनीतिक गतिरोध, समुदायों के बीच अविश्वास, और हिंसा की भयावहता ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ठप कर दिया है. केंद्र सरकार यदि गंभीरता से पुनर्वास, सशस्त्र गुटों पर कार्रवाई, और राजनीतिक संवाद को प्राथमिकता दे, तभी राज्य को स्थायित्व और लोकतंत्र की ओर दोबारा लाया जा सकेगा.